चिताये धडाधड जल रही है । एक के बाद एक प्रेत राम नाम सत्य है आवाज के साथ घाट पर चार लोगोंके कँधेपर आ रहे है ।
चिता जलानेवाले शांत होकर अपने कार्यमे व्यग्र है । ना कोई भाव या भावना का प्रदर्शन । कडाके की ठंडमें भी यहाँकी अग्नी वातावरण नर्म बनाये हुई है । गंगा मैय्या शांत बेहती चली जा रही है । क्या पता कितने सहस्त्र वर्षोसे ...
धर्म पर विश्वास हो या ना हो सबको आखिरकार जाना तो है ही । आकाश, जल, वायू और पृथ्वी तत्त्वोकें संगमपर अंदरका अग्नीतत्व भी प्रकट होकर यह शरीर वापीस उसी तत्त्वोमें समा जाता है । मै शून्याकार होकर एकटक ये विलय देख रहा हू ।
सोचता हू कि ये दुःख कि घडी है या मुक्ती की ? या फिर पुनः उत्पत्ती के चक्र शुरु होने की ! हजारो सालोंसे अनेक शरीर यहां मुक्ति की तलाश मे आकार इन तत्त्वोमें विलीन हो गये । शिव जी के वाराणसीके महा शमशान की आग अभी भी सुलग रही है।
आकाशमे सूर्य अभी तक आया नही ; धुंध सबको अपने अंदर समयी हुई धारा के साथ साथ हवामे प्रवाहित हो रही है ।
उसीमे एक और अंतिम यात्रा घाटपर राम नाम के साथ धुवे को चीरती हुवी आती है ।
आखिरकार घाट के दिवार पर लिखे हुए एक लाईनपर दृष्टी जाती है ।बाबा बाबा सब कहें माई कहे न कोय । बाबा के दरबारमें माई कहे सो होय ।। अनंतकालसे सृष्टिचक्र जिसके कारण शुरु हुआ उसी प्रकृती या माताके आज्ञासे ये देह छोडना है । तब तक जीवन का हर पल सृष्टि के इस खेल में जी भरके खेलना है ।
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